यह एक प्रेम कविता है| जिसमें कवी ने अपनी प्रेम भावनाओं को प्रेम कविता का रूप देकर प्रस्तुत किया है| आइये इस प्रेम कविता का आनंद लें|
कितनी रातें बीत गई पर मैं नहीं सोया,
ऐसा लगता है कब से मैं नहीं रोया,
तू चला गया है यह जानता हूँ फिर भी,
ऐसा लगता है जैसे मैंने कुछ नहीं खोया,
कितनी रातें बीत गई...........................
दी थी जो पहली बार में तुने वो दुआएं,
माला बना कर उसको गले में है पिरोया,
कितनी रातें बीत गई...........................
पिया था पानी कभी जिन पयालों से तूने,
लगा कर लबों से हर रात है भिगोया,
कितनी रातें बीत गई...........................
तेरे हांथों के निशां अब भी मेरे दामन पर लगे
हैं,
तभी तो आज तक मैंने उन निशानों को नहीं धोया,
कितनी रातें बीत गई...........................
आज भी मिलने आता है तू मुझसे ऐ सनम,
“साहिब” ने तेरी यादों
को इस तरह है संजोया,
कितनी रातें बीत गई...........................
तेरी खुशियों के आगे मेरा वजूद कुछ भी नही,
“साहिब” ने तो खुद को
तेरी यादों में है डुबोया,
कितनी रातें बीत गई...........................||Written by: Sheikh Mustak "SAAHIB"
Very nice
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