Friday, April 21, 2017

कल और आज

कल और आज

कल और आज को लेकर एक तुलनात्मक लेख

Past and present, Kids, cartoon

आजकल आप अपने दोस्तों में, अपने रिश्तेदारों में एक बात अक्सर ही सुन पायेंगे कि मेरी चार साल की बेटी है और वो मोबाइल चला लेती है| मेरा पांच साल का बेटा है और वो कंप्यूटर चला लेता है| मोबाइल के जितने ऍप्लीकेशन मै नहीं चला पाता उससे ज्यादा तो मेरा साढ़े चार साल का पोता चला लेता है, वगैरह-वगैरह| लेकिन क्या यह सब ठीक है? इन सारी बातों के पीछे दो तरह की बातें हैं| 

एक, आज का बच्चा वही चीज़ें कर रहा है जो उसे उपलब्ध है जैसे आज हमारे बच्चों के पास मोबाइल लैपटॉप आदि चीज़ें हैं, इसलिए वो उनका इस्तेमाल कर पा रहे हैं| जब हम छोटे थे और उस ज़माने में हमारे पास जो चीज़ें उपलब्ध थी हम भी वो भली-भांति इस्तेमाल कर पाते थे| जैसे आज हम अपने बच्चों के लिए कहते हैं कि मेरा बेटा मोबाइल चला लेता है, मेरी बेटी कंप्यूटर चला लेती है| वैसे ही हमारे बुज़ुर्ग हमारे बारे में कहते थे की मेरा बेटा साइकिल चला लेता है| कोई कहता था पूरी सीट पर बैठ कर चलाता है तो कोई कहता था कैंची चलाता है| मतलब जिस दौर में जो चीज़ें मुहैयाँ थी बच्चें उन चीज़ों का इस्तेमाल अच्छे से कर लेते है| इससे यह नहीं साबित होता की कल के बच्चों में और आज के बच्चों में बौधिक विकास का अंतर आया है| कल और आज के बच्चों में बौधिक विकास लगभग एक सामान है, बस फ़र्क दौर का और समय का है| जिस दौर में जो चीज़ें मुहैयाँ होती है उस दौर के बच्चे उन चीज़ों का सही इस्तेमाल कर ही लेते है|

अब दूसरी बात पर आते हैं| क्या जो आज का बच्चा कर रहा है सही है? आज बच्चा मोबाइल, लैपटॉप चला रहा है| कल बच्चा अपने दौर के हिसाब से हासिल चीज़ों का इस्तेमाल करता था| लेकिन फिर भी उनमे फ़र्क है| कल का बच्चा भी खेल-कूद में वक़्त बीताता था, और आज का बच्चा भी| बस फ़र्क है तो शारीरिक गतिविधियों का| आज का बच्चा एक जगह बैठकर, पेप्सी वेफर्स खाते हुए मोबाइल पर गेम खेलता है, लैपटॉप पर यूट्यूब देखता है| और किसी तरह का शारीरिक गतिविधि वाला खेल नहीं खेलता| आज का बच्चा मोबाइल-लैपटॉप से निकलने वाली हानिकारक तरंगो का अनजाने में सामना करता है| साथ ही एक ही जगह बैठकर और शरीर को हानि पहुँचाने वाले चीज़ें खाकर अपनी तबियत ख़राब करता है| लेकिन कल का बच्चा मैदान में जाकर खेलता था, जिससे उसका शारीरिक विकास होता था| बच्चे तंदुरुस्त बनते थे| और जब थक कर घर आते थे तो भूक लगती थी और जमकर पौष्टिक पेय या भोजन करते थे| जिससे उनके शरीर में ताक़त और स्फूर्ति आती थी|


अब आप लोग ही विचार करें कि क्या सही है और क्या ग़लत| मैं नहीं कहता कि आज की चीज़ें ग़लत है| लेकिन उसका इस्तेमाल सही तरीके से हो तो सही है| जिस चीज़ की ज़रूरत जब हो उतना ही करें| ताकि बच्चे उन चीज़ों से ज़रूरी चीज़ें सीखें न की ग़ैर-ज़रूरी और हानिकारक तरंगों के शिकार बनें| हर दौर में हर इस्तेमाल की चीज़ें ज़रूरी होती है लेकिन उससे भी ज़रूरी है उसका ज़रूरत के अनुसार इस्तेमाल| अपने बच्चों का ध्यान रखें और उन्हें बताएं उनके लिए क्या ज़रूरी है और क्या गैर ज़रूरी|

Written by: Sheikh Mustak "SAAHIB"

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